धरती माताजी की कहानी(Dharti Mata ji Ki Kahani)
एक समय की बात है एक गांव में एक मां और उसका बेटा-बेटी रहते थे। माँ बहुत गरीब थी, वह मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरती थी। धीरे-धीरे दिन गुजरते गये और दोनों बच्चे बड़े होने लगे। बेटा बेटी शादी के योग्य हो गये तब मां बूढ़ी हो गई। मां ने अपने बेटे से कहा कि बेटा तेरी बहन शादी के योग्य हो गई है इसलिए तेरे जैसा वर देखकर उसकी शादी कर देना ।
ऐसा कहकर मां कुछ दिनों के बाद मर गई। उसका भाई गांव गांव में घुमा लेकिन अपनी बहन के योग्य उसे वर नहीं मिला। वह घूम घूम कर बहुत थक गया और एक दिन सोचने लगा कि मेरे जैसा तो इस दुनिया कोई नही है, इसलिए मैं ही अपनी बहन से शादी कर लेता हूं। वह ऐसा सोचकर चुनरी और शादी के लिए सब सामान ले कर घर
आया, तब उसकी बहन ने पूछा कि भाई, तुम यह सब सामान क्यों लेकर आए हो।
तब उसके भाई ने कहा बहन यह सब सामान तुम्हारी शादी के लिए लेकर आया हूं। तब गांव वालों ने बहन से कहा कि तुम्हारा भाई ही तुमसे शादी करने वाला है, गांव वालों से ऐसा सुनकर बहन ने जाकर अपने भाई से पूछा कि भाई मेरी शादी किससे करवा रहे हो। इस पर भाई ने उसको कोई जवाब नहीं दिया, तब बहन सब समझ गई।
उसने एक लोटे में जल लिया, चुनरी ली और चप्पल पहनकर जंगल की तरफ चली गई। वन में गाय चराने वाले ग्वालो ने उसे देखा तो उससे पूछा कि कहां जा रही हो तो वह कुछ नहीं बोली और वन की तरफ दौड़ने लगी । वन में जाकर वह धरती माता को पुकारने लगी और बोली कि – हे धरती मां, अब तुम ही मेरी लाज रखना वरना अनर्थ हो जाएगा।
तब धरती फटने लगी और धरती माँ बोली , मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकती हु तब बहन बोलने लगी मां मुझे अपनी गोद में ले लो, नहीं तो अन्याय हो जाएगा। इतना कह कर धरती माँ ने उसको अपनी गोद में बिठा लिया तो बहन ने एक तरफ लोटा, चुनरी और चप्पल रख दिए और वह धरती में जाने लगी। इतने में दौड़ता हुआ उसका भाई वन में आया और उसने ग्वालो से पूछा कि मेरी बहन किधर गई है। तो ग्वालो ने कहा कि तेरी बहन उस घने वन की तरफ गई है।
तब वह बहन-बहन पुकारता हुआ उस वन की तरफ दौड़ता है ,तब वह देखता है कि उसकी बहन धरती में समा रही है। यह देखकर वह बहन को पुकारता हुआ उस तरफ दौड़ता है तब तक उसकी बहन धरती में समा चुकी थी, उसके केवल थोड़े से बाल दिखाई दे रहे थे। वह बहन के बालों को मुट्ठी में पकड़ कर रोने लगा की बहन तू सत्य के लिए धरती मां की गोद में समा गई, मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी।
माँ ने जो वचन दिया था उसको निभाने के लिए मुझे मेरे जैसा कोई वर नहीं मिला इसलिए ऐसा विचार आया, ऐसा बोलकर वह जोर जोर से रोने लगा। पर धरती मां ने सत्य के लिए बेटी को अपने में समा लिया। जो बाल बाहर थे वे धुब बन गए। इसलिए औरतें धरती माता की कहानी सुनती है और चुनरी, चप्पल, लोटा बर्तन में हरी मूंग और लड्डू कुंवारी कन्या को देती है।
जो भी धरती माता की कहानी सुनता है धरती माता उसको बहुत सुख प्रदान करती हे । बोलो धरती माता की जय।